यह साँसत
लगता है
संकट बन जाएगी
खामोशी यह
भारी पड़ेगी
कहीं-न-कहीं
बहुत व्यवस्थित होने का दवाब
बिखरा देता है
अधिक
आती हैं
इतनी मुश्किलें
कि उपाय -
गड्डमड्ड होने लगते हैं
होता है क्यों ऐसा
कि पता नहीं चलता
समय का सही अर्थ
और सूझते नहीं
शब्द -
कुछ कहने के लिए?